Wednesday, May 13, 2009

भारत की जनसंख्या कितनी है?


-: क्रांति प्रकाश
भारत की जनसंख्या कितनी है? यह सामान्य ज्ञान का एक सामान्य सा प्रश्न है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह एक अरब 15करोड़ के करीब है। करीब इसलिए कि भारत की आबादी का कोई ठोस या कहें कि सही-सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। जितने स्रोत उतने आंकड़े। जो भी हो असल सवाल यह है कि क्या भारत की आबादी सचमुच उतनी ही है जितनी की सरकारी आंकड़े बताते हैं?
जरा गौर करें, शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार देश की शहरी आबादी हर साल 27 फीसदी बढ़ जाती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह भारत की कुल आबादी का ही एक हिस्सा है जो काम-धंधों की तलाश में अपना घर-बार छोड़ कर शहरों में केंद्रित हो रहा है। हम सभी जानते हैं कि रोजी-रोटी की तलाश में निकले लोग जहां जाते हैं वहीं अपना घर बसा लेते हैं। यानी कुछ साल तक तो वे अपने घर लौटने के बारे में सोचते भी नहीं। इस तरह वे अपने गांव के अलावा उस जगह के भी नागरिक बन जाते हैं, जहां वे काम करने आए थे। इनमें से शायद ही कोई होगा जो अपने मूल कस्बे या गांव के वोटर लिस्ट से अपना नाम कटवाने की जहमत उठाता है। उल्टे वह उस शहर की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवाने में सबसे आगे रहता है। ऐसा इसलिए है कि हमारे बैंक एक बचत खाता खोलने के लिए भी स्थानीय पता का सबूत मांगते हैं।
बिहार से दिल्ली आकर मजदूरी करने वाला शख्स बिहार वाले मतदाता पहचान पत्र के आधार पर किसी सरकारी बैंक में खाता नहीं खुलवा सकता। हालांकि नियमों के अनुसार ऐसा हो सकता है, लेकिन शायद ही कोई बैंक मजदूरों के प्रति ऐसा उदारता दिखाता है। बैंक का खाता खुलवाना एक उदाहरण भर है। सच यह है कि किसी भी नागरिक सुविधा को पाने के लिए स्थानीय पते की अनिवार्यता ने भारत की जनगणना को मजाक बना दिया है। हालात यह है कि एक ही शख्स का नाम दो-तीन जगह की मतदाता सूची में शामिल हो जाता है। वैसे चुनाव आयोग को भी इसका अंदाजा है और वह समय-समय पर मतदाता सूची को सुधारने की कोशिश करता रहता है। लेकिन मामला हल होता नहीं दिखता।
दूसरा तथ्य यह है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में 38 करोड़, 99 लाख, 48 हजार, 330 लोगों ने वोट डाला। चुनाव आयोग के अनुसार उस साल कुल 67 करोड़, 14 लाख, 87 हजार, 930 लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज थे। हो सकता है कुछ लोगों के नाम छूट गए हों। अगर ऐसे लोगों की संख्या दस लाख भी मान ली जाए तो कुल वोटरों की संख्या 67 करोड़ 25 लाख से ज्यादा नहीं होगी। ऐसे में सोचने की बात है कि अठारह साल से कम उम्र के बच्चों और किशोरों की संख्या कितनी होगी? अगर बच्चों और किशोरों की कुल आबादी को 20 करोड़ भी माना जाए तो भारत की कुल जनसंख्या 88 करोड़ से ज्यादा नहीं होगी। जाहिर है, भारत की जनसंख्या को लेकर जो आंकड़े पेश किए जाते हैं, उस पर विश्वास करना मुश्किल है।
इसमें कोई शक नहीं कि भारत एक विशाल आबादी वाला देश है, लेकिन यह आबादी उतनी बड़ी नहीं है जितना सरकारी आंकड़े बताते हैं। मेरा ख्याल है कि कहीं न कहीं इसका संबंध उन लोगों से है जो देश के लिए योजनाएं बनाते हैं। क्योंकि हजार व्यक्ति की जगह दो हजार लोगों को ध्यान में रखकर जब योजना बनायी जाएगी तो ज्यादा फंड का आवंटन होगा और देश के विकास में लगे लोगों के खुद के विकास की भी पूरी संभावना होगी। सीधे-सीधे कहें तो आम जनता के लिए बनायी जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवंटित राशि का आधा हिस्सा अधिकारियों से लेकर ठेकेदारों की जेब भरने के काम आता है और इसकी जड़ में वह काल्पनिक आबादी जो वास्तविकता से करीब-करीब दोगुना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस काल्पनिक आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूखे-नंगे लोगों के कल्याण के नाम पर देश के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा कुछ चुनिंदा शहरों पर खर्च किया जाता है।
बहरहाल, अब समय आ गया है कि इस गोरखधंधे पर लगाम लगायी जाए। कहीं न कहीं सरकार को भी इस गफलत का अंदाज है और शायद इसलिए योजना आयोग ने राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की योजना पर अमल करने का फैसला किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसके लागू होने के बाद देश की कुल आबादी की सही तस्वीर सामने आएगी। (लेखक जैविक खेती अभियान के संचालक हैं)

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