Monday, January 11, 2016
स्वतंत्रता और स्वैराचारी
Saturday, October 25, 2014
Saturday, October 5, 2013
लालू जिस दिन मुख्यमंत्री की शपथ ली
Wednesday, June 13, 2012
विकास की प्रतीक्षा में उत्तर बिहार
Saturday, September 10, 2011
गंगेया, बागमती और बाढ़
Monday, August 8, 2011
प्रिय महोदय / महोदया,
अपनी मशहूर किताब स्माल इज ब्यूटीफुल से विचारों की दुनिया में हलचल मचा देने वाले लेखक अर्नेस्ट फ्रेडरिक शुमाकर का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। इस मौके पर 16 अगस्त 2011 को दिल्ली में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। जिसका विवरण निम्न है –
विषय – वर्तमान संदर्भों में ई एफ शुमाकर के विचारों का महत्व
कार्यक्रम
दिनांक : 16 अगस्त 2011
समय : सुबह 11 बजे
स्थान : राजधानी कॉलेज, ऑडिटोरियम
दिल्ली विश्वविद्यालय
राजा गार्डन, नई दिल्ली
कृपया वक्त पर पधारने का कष्ट करें।
शुभकामनाओं के साथ
जैविक खेती अभियान
फोन 00919213295509 javik@rediffmail.com
Dear Sir/ Madam
We are pleased to inform you that Birth Centenary of Ernst Friedrich Schumacher (Author of Small is Beautiful) - is being celebrated on 16th August, 2011 in Delhi.
Sub: - Significance of E.F. Schumacher’s thought –Small is Beautiful- in present Context.
Programme:
Date: 16th August 2011
Time: 11 AM onward
Place: Rajdhani College Auditorium
(University Of Delhi)
Raja Garden, New Delhi
Kindly record it in your engagement diary
With Regards,
Jaivik Kheti Abhiyan(campaign for organic farming)
00919213295509
Wednesday, August 3, 2011
Sunday, June 6, 2010
पर्यावरण बचाना होगा
Sunday, February 21, 2010
बधाई के पात्र हैं जयराम रमेश
अर्थशास्त्री जयराम रमेश उदारीकरण के वैसे ही पैरोकार माने जाते रहे हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी माने जाते हैं। उदारीकरण की तेजी से बहती बयार को सिर्फ अमेरिकी हवा ही पसंद आती है। अमेरिका की खुशियां, अमेरिकी उपलब्धि और अमेरिकी तैयारी उदारीकरण के पैरोकारों को अपनी खुशी, अपनी उपलब्धि और अपनी तैयारी नजर आने लगती है। यही वजह है कि बीटी बैंगन के उत्पादन को भारत में भी मंजूरी मिलने की उम्मीदें लगाई जा रही थीं। किसानों के संगठन और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं इसे लेकर सशंकित थीं। इसे लेकर रतलाम से लेकर बिहार तक में आंदोलन शुरू हो गए थे। किसानों को आपत्ति थी कि इससे भारतीय प्रजाति के बैंगन का खात्मा हो जाएगा। साथ ही भारतीय स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन जैविक रूप से बदले जा चुके इस बैंगन के पैरोकारों को दावा है कि इससे ना सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि इसके उत्पादन में कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा। लेकिन इस विवाद का अंत नजर नहीं आ रहा था। इसे लेकर जयराम रमेश ने जन संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों और किसानों से चर्चा शुरू की। उन्होंने खुद बताया कि भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन से तीन दौर की बातचीत की। इसके बाद इसके उत्पादन को मंजूरी देने से फिलहाल इनकार कर दिया।
उदारीकरण में चर्चाओं और बातचीत को नजरंदाज करने की परंपरा सी बन गई है। ऐसे में में जयराम रमेश ने अगर ऐसा कदम उठाया तो निश्चित तौर पर वे प्रशंसा के पात्र हैं। इन चर्चाओं और बहस-मुबाहिसों के दौरान उन्हें खुलेआम खरीखोटी भी सुननी पड़ी है तो दूसरों को खरीखोटी सुनाने में वे भी खुद पीछे नहीं रहे। लेकिन उन्होंने आखिरकार एक क्रांतिकारी फैसला लेने का साहस दिखाया है तो इसके लिए उनकी प्रशंसा करने से गुरेज नहीं होना चाहिए।
यह सच है कि आनुवंशिक रूप से संवर्धित यानी बीटी बैंगन का फिलहाल दुनिया में कहीं भी उत्पादन नहीं हो रहा है। अगर भारत इसकी मंजूरी देता तो वह दुनिया का पहला ऐसा देश बनता। लेकिन यह ऐसा मसला नहीं है, जहां रिकॉर्ड बनाने की जरूरत है। बल्कि देश के स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण की समस्या से भी जुड़ा ये मामला है। ऐसे में उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार अपने इस फैसले पर बाद में भी कायम रह सकेगी।
इसे देखते हुए जयराम रमेश ने जनसंगठनों, पर्यावरण और खेती के क्षेत्र में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ ही देश में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन से चर्चा की। इस चर्चा के बाद उन्होंने फिलहाल देश में बीटी बैंगन के उत्पादन को मंजूरी देने से मना कर दिया है। जयराम रमेश का कहना है कि चूंकि बीटी बैंगन को लेकर फ़िलहाल पर्याप्त वैज्ञानिक अध्यययन नहीं हुए हैं और इस समय बीटी बैंगन के व्यावसायिक अध्ययन के लिए जल्दबाज़ी की कोई वजह भी नहीं है इसलिए फ़िलहाल इसे अनुमति नहीं दी जा रही है.
मुझ पर दबाव में आने का आरोप लगाया जा सकता है लेकिन यह सोच समझकर, ज़िम्मेदारी के साथ लिया गया पारदर्शी निर्णय है
उन्होंने कहा, "भारत दुनिया का पहला देश होता जो बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति देता इसलिए इस पर बहुत एहतियात की ज़रुरत थी."